
संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस ने आधिकारिक तौर पर फलस्तीन को एक स्वतंत्र देश की मान्यता दे दी है, और इसके साथ ही एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय संदेश दे दिया गया है – “शांति के लिए दो राष्ट्र समाधान ही इकलौता रास्ता है।”
इससे पहले ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल जैसे देशों ने भी रविवार को फलस्तीन को औपचारिक मान्यता दी थी।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का बयान – “स्टेटहुड कोई ईनाम नहीं, एक अधिकार है”
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“फलस्तीनियों को स्टेटहुड का दर्जा देना उनका हक है, ये कोई रिवॉर्ड नहीं।”
गुटेरेस ने चेताया कि अगर ये हक नहीं दिया गया, तो “चरमपंथी ताकतों के लिए ये एक तोहफ़ा बन जाएगा।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि:
“दो-राष्ट्र सिद्धांत ही स्थायी शांति और सुरक्षा का एकमात्र विश्वसनीय रास्ता है।”
नेतन्याहू नाराज़: “ये आतंकवाद को इनाम है!”
इधर इस ऐलान से इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू बुरी तरह भड़क गए। उन्होंने कड़ा बयान देते हुए कहा:
“फलस्तीन को मान्यता देना, आतंकवाद को एक बड़ा इनाम देने जैसा है।”
नेतन्याहू का बयान इस ओर इशारा करता है कि इजराइल इस फैसले को पूरी तरह नकारात्मक दृष्टि से देख रहा है, और इसकी विदेश नीति पर असर पड़ना तय है।
ग्लोबल डायनामिक्स: अब क्या बदलेगा?
अब तक दर्जनों देश फलस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं, लेकिन अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों की चुप्पी बनी हुई है।
फ्रांस जैसे देश की मान्यता अब उस मौन को तोड़ रही है, और यह मध्य-पूर्व में एक नए डिप्लोमैटिक युग की शुरुआत की तरह देखा जा सकता है।

सटीक बिंदुओं में:
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फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फलस्तीन को देश का दर्जा दिया
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ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, पुर्तगाल पहले ही समर्थन दे चुके हैं
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गुटेरेस ने कहा – यह फलस्तीनियों का हक है, न कि कोई रिवॉर्ड
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नेतन्याहू बोले – ये आतंकवाद को बढ़ावा देना है
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दो-राष्ट्र समाधान को बताया गया शांति का एकमात्र उपाय
क्या दुनिया अब फलस्तीन को नए नज़रों से देखेगी?
फ्रांस की यह मान्यता सिर्फ एक डिप्लोमैटिक स्टेटमेंट नहीं, बल्कि एक वैचारिक बदलाव का संकेत है।
यह दिखाता है कि वैश्विक समुदाय अब ‘status quo’ को चुनौती देने और “शांति को प्राथमिकता देने” की दिशा में बढ़ रहा है।
लेकिन सवाल बना हुआ है:
क्या इसराइल इसे कूटनीतिक तौर पर स्वीकारेगा?
या फिर यह कदम मध्य-पूर्व को और अस्थिर करेगा?